Wildlife Sanctuaries Of Rajasthan Part 2 | राजस्थान के वन्य जीव अभयारण्य हिंदी नोट्स पार्ट 2

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Wildlife Sanctuaries Of Rajasthan Part 2

Wildlife Sanctuaries Of Rajasthan Part 2 राजस्थान के वन्य जीव अभ्यारण में एवं राष्ट्रीय उद्यान देश का सबसे अधिक दुर्लभ पक्षी गोडावन है जो राजस्थान के बीकानेर बाड़मेर और जैसलमेर जिलों में अधिक संख्या में मिलता है राष्ट्रीय उद्यान 26 वन्य जीव अभयारण्य एवं 33 आखेट निषेध क्षेत्र घोषित किया जा चुके हैं भारतीय वन्यजीव कानून 1972 देश के सभी राज्यों में लागू है राज्य में बने प्राणियों के प्राकृतिक आवास को जानने के लिए दो संरचना के अनुसार प्रदेश को चार मुख्य भागों में बांटा जा सकता है आज इन्हीं के बारे में चर्चा करेंगे राजस्थान के वन्य जीव अभ्यारण में एवं राष्ट्रीय उद्यान के बारे में हम आपकोसरल व साधारण तरीके सेनोट्स प्रोवाइड करवा रहे हैं आप हमारे साथ बने रहे

Wildlife Sanctuaries Of Rajasthan Part 2

अभयारण्य

सरिस्का अभयारण्य (अलवर)

  • 402 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में विस्तृत, अलवर से 35 कि.मी. दूर, जयपुर- दिल्ली राष्ट्रीय मार्ग पर स्थित है।
  • सबसे पहले इसकी स्थापना 1900 में हुई। 1955 में राज्य सरकार ने इसे अभयारण्य घोषित किया। 1990 ई. में इसे राष्ट्रीय पार्क का स्तर प्रदान किया गया।
  • प्रोजेक्ट टाइगर योजना में सम्मिलित राजस्थान का दूसरा अभयारण्य है।
  • इसमें सरिस्का पैलेस होटल महाराजा जयसिंह द्वारा 1892 से 1900 के मध्य बनवाया गया।
  • यहाँ पर बाघ, बघेरे, जरख, सांभर, चीतल, चिंकारा, नीलगाय, जंगली सूअर आदि विचरण करते देखे जा सकते हैं।
  • सरिस्का अभयारण्य में कासना तथा कॉकचाड़ी नामक पठार स्थित हैं।
  • इस अभयारण्य में निम्नलिखित मंदिर एवं धार्मिक स्थल हैं-
  1. भर्तृहरि
  2. नीलकंठ महादेव
  3. पांडुपोल हनुमानजी
  4. तालवृक्ष
  • सरिस्का अभयारण्य में राजस्थान पर्यटन विकास निगम द्वारा संचालित होटल टाईगर डेन स्थित है।
  • इसमें धोंक एवं लापला नामक वनस्पति मुख्य रूप से पाई जाती है।

मरुउद्यान, जैसलमेर

  •  8 मई, 1981 को मरु उद्यान की स्थापना।
  • 162 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में विस्तृत । (1900 जैसलमेर एवं 1262 बाड़मेर)
  • चिंकारा, चौसिंगा, काले हिरण एवं गोडावन आदि पशु- पक्षियों पर विशेष ध्यान दिया गया।
  • काले हिरणों एवं चिंकारा को संरक्षण दिया गया है।
  • मरुउद्यान का एक भाग माने जाने वाला आकल बुड फॉसिल पार्क जैसलमेर से लगभग 15 कि.मी. दूर बाड़मेर रोड़ के समीप स्थित है।
  • इस क्षेत्र में 18 करोड़ वर्ष पुराने पेड़-पौधे के काष्ठ अवशेष फैले हुए हैं तथा वन्य जीव पिंजरा, मरु बिल्ली, लोमड़ी, गोह व खरगोश आदि यहाँ विचरण करते हैं।
  • राजस्थान का राज्य पक्षी गोडावन (ग्रेट इंडियन बर्ड) यहाँ पाया जाता है।
  • मरुउद्यान में उभयचर जंतु समूह टॉड की प्रजाति एण्डरसन्स टॉड पाई जाती है।
  •  इस अभयारण्य में रेगिस्तानी साँपों में पीवणा, कोबरा, रसल्सवाई पर, स्केण्डवाइपर इत्यादि पाये जाते हैं।

ताल छापर अभयारण्य (चूरू)

  • यह काले हिरणों के लिए प्रसिद्ध है।
  • यह चूरू जिले में छापर गाँव के पास 7.19 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में स्थित है।
  • प्रतिवर्ष शीतकाल में हजारों कुर्जा पक्षी तथा क्रोमन केन यहाँ शरण लेने आते हैं।
  • वर्षा के मौसम में इस अभयारण्य में एक विशेष नर्म घास उत्पन्न होती है जिसे मोबिया साइप्रस रोटन्डस कहते हैं।
  • तालछापर अभयारण्य की क्षारीय भूमि में लाना नामक झाड़ी उत्पन्न होती है।
  • तालछापर अभयारण्य में भैसोलाव तथा डूगोलाव इत्यादि प्राचीन तलैया हैं।

रामगढ़ विषधारी अभयारण्य (बूंदी)

  • यह अभयारण्य 307 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैला हुआ तथा बूंदी से 15 कि.मी. दूर स्थित है।
  • बाघ, बघेरे, रीछ, जरख, गीदड़, चीतल, चिंकारा, नीलगाय, जंगली सूअर, नेवला, खरगोश, मोर, भेड़िया तथा कई प्रकार के रंग-बिरंगे पक्षी पाए जाते हैं।

कुम्भलगढ़ अभयारण्य (राजसमंद-पाली)

  • उदयपुर से 84 कि.मी. दूर स्थित।
  • रीछ, भेड़ियों एवं जंगली सूअर व मुर्गों के लिए प्रसिद्ध।
  • यहाँ लगभग 25 वुड फॉसिल्स स्थित हैं।
  • कुम्भलगढ़ अभयारण्य राजसमन्द एवं पाली जिलों की सीमा में विस्तृत है।
  • भेड़िये प्रजनन के लिए यह देशभर में प्रसिद्ध अभयारण्य है।
  • प्रसिद्ध रणकपुर का जैन मंदिर इसी अभयारण्य में स्थित है। इस अभयारण्य में पाये जाने वाले चौसिंघा को घटेल कहा जाता है जो मथाई नदी के किनारे स्थित है।

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सीतामाता अभयारण्य (प्रतापगढ़)

  • प्रतापगढ़ जिले के प्रतापगढ़ वन मण्डल क्षेत्र में स्थित यह अभयारण्य 423 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में विस्तृत है।
  • इस अभयारण्य में सागवान बाँस पाए जाते हैं
  • किस अभ्यारण में एंटीलॉग प्रजाति का दुर्लभतम जीव चोसिंगा एवम उडन गिलहरियां पाई जाती है
  • इस अभयारण्य में सागवान तथा बांश अधिक पाए जाते हैं
  • यहाँ  लव और कुश नामक दो जल स्रोत पाए जाते हैं 
  • सीता माता अभ्यारण्य के मुख्य रूप से जाखम नदी तथा बुद्ध नालेश्वर सीता माता टंकिया इत्यादि छोटी नदियां बहती है
  • सीता माता अभ्यारण्य से कर्ममोचिनी कारमोई नदी का उद्गम स्थल
  • भारत में हिमालय वन के पश्चात सीता माता अभ्यारण्य दूसरा ऐसा क्षेत्र है जहां वन औषधीय पाई जाती हैं
  • इस अभयारण्य में प्रतिवर्ष जयेस्ट अमावस्या को मेल पड़ता है

सज्जनगढ़ अभयारण्य (उदयपुर)

  • उदयपुर रियासत के एक पुराने आखेट स्थल के लगभग 5.9 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र को सन 1987 में अभयारण्य घोषित किया गया
  • इसमें जंगली सूअर  सांभर चीतल चिंकारा नीलगाय कृष्ण मार्ग लंगूर आदि प्रमुख रूप से पाए जाते हैं

माउंट आबू अभयारण्य (सिरोही)

  • 326.01 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला राजस्थान का प्रमुख पहाड़ी स्थल पर माउंट आबू अभयारण्य है
  • राज्य सरकार ने यहां एक मृग वन भी स्थापित किया गए विषय राज्य सरकार ने 1960 में अभयारण्य घोषित किया
  • जंगली मुर्गी तथा दिखिल पटेरा अबू हंस नमक पादप पाया जाता है जो एकमात्र आबू पर्वत पर पाए जाते हैं इन्हें यहां कारा कहा जाता है 

फुलवारी की नाल (उदयपुर)

  • उदयपुर के पश्चिम में 160 किलोमीटर दूरी पर आदिवासी बहुल क्षेत्र में स्थित इस अभयारण्य की पहाड़ी से मानसी वाकल नदी का उद्गम होता है
  •  इसमें बाग वगैरा चीतल सांभर आदि पाए जाते हैं

भैंसरोडगढ़ भयारण्य (चित्तौड़गढ़)

  • चित्तौड़गढ़ रावतभाटा मार्ग पर स्थित 5 फरवरी 1983 को इसकी स्थापना की गई
  • घड़ियाल इसकी अनुपम धरोहर है यहां तेंदुआ चिंकारा चीतल काफी संख्या में है
  • इसकी विशेषता इसका वन क्षेत्र एक लंबी पट्टी के रूप में चंबल एवं ब्राह्मणी नदी के साथ फैला हुआ है

वन विहार अभयारण्य (धौलपुर)

  • धौलपुर से 20 किलोमीटर दूर रामसागर वन विहार अभयारण्य के नाम से जाना जाता है
  • धौलपुर के अंतिम महाराज ने 193536 ईस्वी में इसे बनवाया
  • दुर्लभ सफेद सरस साइबेरियन क्रेन पक्षियों को वर्ष 19199 में निकटवर्ती झील तालाब शाही में आश्रय लेते पाया गया है

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