Major Crops Of Rajasthan Part 2 | राजस्थान की प्रमुख फसले नोट्स इन हिंदी पार्ट 2

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Major Crops Of Rajasthan Part 2

Major Crops Of Rajasthan Part 2 | राजस्थान की प्रमुख फसले Major crops of Rajasthan राजस्थान की कुल कार्यशील जनसंख्या का लगभग 70% रोजगार की दृष्टि से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है राजस्थान में कृषि सिंचाई के कृत्रिम साधनों के अभाव में कृषक मुख्य रूप से मानसून पर निर्भर है राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का दो तिहाई भाग खरीफ के मौसम में बोया जाता है राजस्थान में सर्वाधिक कृषि का बोया गया क्षेत्र बाड़मेर में तथा सबसे कम राजसमंद जिला है राजस्थान में सर्वाधिक व्यर्थ एवं बंजर भूमि जैसलमेर में है राजस्थान में हरित क्रांति के तहत सर्वाधिक उत्पादन वृद्धि खाद्यान्न के क्षेत्र में हुई खाद्यान्न में सर्वाधिक उत्पादन वृद्धि गेहूं में हुई थी वर्तमान में राजस्थान खाद्यान्न की दृष्टि से आत्मनिर्भर राज्य हैं

Major Crops Of Rajasthan Part 2

मक्का

मक्का की हरी पत्तियों से साइलेज नामक चार बनाया जाता है

मक्का के लिए नाइट्रोजन एवं जीवांश युक्त दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है

मक्का के लिए उष्ण एवं आदरा जलवायु अनुकूल होती हैं

मक्का के लिए 12 डिग्री से 35 डिग्री सेल्सियस तक तापमान तथा 80 से 100 सेंटीमीटर वर्षा की आवश्यकता होती है

राजस्थान में मक्का की खेती लगभग 9.49 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में की जाती है

राजस्थान में मक्का की उन्नत किस्म का विकास राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत अखिल भारतीय समन्वित मक्का सुधार परियोजना राजस्थान कृषि महाविद्यालय उदयपुर तथा कृषि अनुसंधान केंद्र बांसवाड़ा में किया जा रहा है

बांसवाड़ा से 13 किलोमीटर दूर बोदवड गांव के निकट राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के अधीन एक विशाल परिसर में कृषि अनुसंधान केंद्र संचालित थे इस अनुसंधान केंद्र में मक्का की संयुक्त किस्म माही कंचन तथा माही दावल विकसित की है

दक्षिणी राजस्थान में रवि के मौसम में भी मक्का की खेती को किसने में लोकप्रिय बनाने का श्रेय बांसवाड़ा कृषि अनुसंधान केंद्र को ही है 

कृषि अनुसंधान केंद्र बांसवाड़ा की ओर से विकसित मक्का की संकुल कृष्णा माही कंचन अधिक उपज वाली मक्का की किस्म है

मक्का की किस्म नवजोत, अगेती – 76 ,गंगा-2 गंगा – 11 किरण तथा माही है

राजस्थान के प्रमुख मक्का उत्पादक जिला भीलवाड़ा डूंगरपुर चित्तौड़गढ़ इत्यादि

चावल

खरीफ के मौसम में 100 सेंटीमीटर से 130 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्र में

चावल उष्ण कटिबंधीय पौधा है चावल के लिए बोते समय 20 डिग्री से तथा पटे समय 27 डिग्री से तापमान की आवश्यकता होती है

चावल के लिए काम्प एवं चिकनी दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है 

राजस्थान में सबसे अधिक चावल का क्षेत्र बांसवाड़ा में 31 प्रतिशत है तथा सबसे अधिक उत्पादन हनुमानगढ़ 26.31 प्रतिशत जिले में होता है

चावल की प्रमुख किस्म माही सुगंधा कृषि अनुसंधान केंद्र बांसवाड़ा द्वारा विकसित व चंबल जया बी.के.  190 आदि है

राजस्थान में चावल उत्पादन की दृष्टि से हनुमानगढ़ प्रथम स्थान पर है जबकि चावल का बोया गया क्षेत्र सर्वाधिक बांसवाड़ा में है द्वितीय स्थान बूंदी का है

दलहनी फसले

 खेतों को नाइट्रोजन मिलती है हरी खाद के रूप में भी इसका उपयोग किया जाता है दलहन फसलों का

खरीफ की दलहन फसलों के बोए गए क्षेत्र की दृष्टि से राज्य का देश में द्वितीय स्थान है

रबी के मौसम की दलहन फैसले  चना मसूर मटर

खरीफ की फैसले मौत उड़द मूंग चावल अरहर तुवर 

1986 व 87 में राष्ट्रीय दलहन विकास परियोजना प्रारंभ की गई

राजस्थान में वाराणसी क्षेत्र में बोए जाने के कारण मौत राजस्थान की प्रमुख फसल मानी जाती है जिसका बोया गया क्षेत्र का 40% भाग आता है

राजस्थान में समग्र दलों के उत्पादन की दृष्टि से नागौर प्रथम स्थान पर है

चना

इस गेहूं और जो के साथ होते हैं तब इसे गोचनी अथवा बिछड़ कहते हैं

भारत में चने के कुल क्षेत्रफल का 22.78 प्रतिशत राजस्थान में है उत्पादन में मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश के बाद तीसरा स्थान है

राजस्थान में चना उत्पादन में चूरू बीकानेर सीकर हनुमानगढ़ इत्यादि प्रमुख जिले हैं

रबी  के दलहनी फसलों में सर्वाधिक बोया गया क्षेत्र चने का है

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गन्ना

गन्ना मूल रूप से भारतीय पौधा है भारत का उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान है

गन्ने की खेती के लिए औसत तापमान 20 से 25 डिग्री से तथा 100 सेंटीमीटर वर्षा की जरूरत होती है

गन्ने का उपयोग का उपयोग चीनी शराब कागज आदि में किया जाता है

राजस्थान में सबसे अधिक गाना श्रीगंगानगर बूंदी उदयपुर हनुमानगढ़ जिले में होते हैं

यह उष्णकटिबंधीय पौधा है इसके लिए भूमि में फास्फोरस की आवश्यकता अधिक होती है

पाला गन्ने की खेती के लिए हानिकारक होता है

तिलहन

छोटे बीज के तिलहन अलसी, राइसरसों व तिल

बड़े बीज के तिलहन मूंगफली अरंडी बिनोला सोयाबीन व नारियल

तिल होने फसलों के अनुसंधान के लिए भारतीय कृषिअनुसंधान परिषद ने सन 1967 में अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना का शुभारंभ किया था जिसमें पांच पिलानी फैसले मूंगफली सरसों अलसी तिल व रंडी को शामिल किया गया था बाद में कुसुम रामटीआईएल व सूरजमुखी को भी इसमें सम्मिलित कर लिया गया था

सरसों

सरसों शीत एवं शुष्क जलवायु तथा चमकदार धूप की आवश्यकता वाला पौधा होता है

सरसों के लिए औसत तापमान 20 डिग्री से सेंटीग्रेड से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तक चाहिए तथा 75 से 100 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्र में इसका उत्पादन किया जा सकता है

केंद्रीय सरसों अनुसंधान केंद्र राज्य में सेवर भरतपुर में स्थापित किया गया है

इस केंद्र की स्थापना आठवीं पंचवर्षीय योजना में की गई थी

इस अनुसंधान केंद्र द्वारा केंद्र सरकार व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से सरसों की किस्म विकसित की गई है उनमें रोहिणी वरुण पूर्ण बोर्ड रजत rh 30 महत्वपूर्ण है

वर्तमान में पीत क्रांति पीली क्रांति बोलता है सरसों क्रांति का पर्याय है राजस्थान को सरसों के अंतर्गत देश का सर्वाधिक क्षेत्र एवं उत्पादन के फल स्वरुप जिसे सरसों को प्रदेश कहा जाने लगा है

राजस्थान में सरसों के उत्पादन का एक तिहाई भाग श्रीगंगानगर अलवर  भरतपुर धौलपुर और सवाईमाधोपुर  मैं उत्पन्न हुआ है

सोयाबीन

इसके लिए 15 से 34 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है तथा 60 से 120 सेंटीमीटर वर्षा उपयुक्त रहती है

सर्वाधिक प्रोटीन पाया जाता है

इसके तेल से वनस्पति घी बनता है

मध्य प्रदेश को सोयाबीन प्रदेश कहा जाता है

यह फसल आर्थिक दृष्टि से किसानों के लिए लाभदायक है

राजस्थान में सोयाबीन की खेती के महत्वपूर्ण जिले झालावाड़ कोटा बारा बूंदी तथा चित्तौड़गढ़ है

खरीफ तिलहन के अंतर्गत राज्य में सर्वाधिक क्षेत्र में सोयाबीन बोया जाता है

मूंगफली

खरीफ के मौसम में 50 सेंटीमीटर से 125 सेंटीमीटर वर्षा वाली क्षेत्र में बोई जाती है इसके लिए 25 डिग्री से सेंटीग्रेड से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है इसके लिए कैल्शियम युक्त मिट्टी सर्वाधिक उपयुक्त होती है

राजस्थान में सर्वाधिक उत्पादन बीकानेर जयपुर जिले में होता है बीकानेर जिले की लोन करणसर की मूंगफली विश्व प्रसिद्ध लूणकरणसर को राजस्थान का राजकोट कहते हैं

तिल

मुख्य रूप से खरीफ की फसल है इसके लिए उसने एवं आदरा जलवायु की आवश्यकता होती है इसके लिए 8 से 2 पीएच मान वाली हल्की बालू और दोमट मिट्टी जिसमें जीवाश्म की मात्रा हो उपयुक्त होती है इसके लिए 25 डिग्री सेंटीग्रेड से 35 डिग्री सेंटीग्रेड तक तापमान आवश्यक होता है राजस्थान में सर्वाधिक तेल पाली एवं नागौर में होता है

अलसी

रबी के मौसम में समशीतोष्ण एवं शीतोष्ण जलवायु में 20 डिग्री से 30 डिग्री सेंटीग्रेड वाले क्षेत्र में बोई जाती हैं

अलसी के लिए उपजाऊ वृद्धि का दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है

राजस्थान के कोटा बूंदी बारा जिले में प्रमुख कसी उत्पादक जिले हैं

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