Jantu Prajanan Or Kishoravastha | जंतु प्रजनन एवं किशोरावस्था भाग-2

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Jantu Prajanan Or Kishoravastha

Jantu Prajanan Or Kishoravastha नमस्कार दोस्तों आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से आप सभी को जंतु प्रजनन और किशोरावस्था के बारे में संपूर्ण जानकारी दे रहे हैं इस आर्टिकल के माध्यम से जनन तंत्र नरजनन तंत्र मादा जनन तंत्र आदि के बारे में हम आपको बता रहे हैं जिसमें  वृषण अधिवर्षण शुक्र वाहिनी मूत्र मार्ग सहायक जनन ग्रंथियां आदि के बारे में हम आपको नीचे जानकारी उपलब्ध करवा रहे हैं तो आप सभी हमारे इस आर्टिकल के साथ बने रहे आईये शुरू करते हैं.

Jantu Prajanan Or Kishoravastha
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जनन तंत्र

मनुष्य एक लिंगी (यूनिसेक्सुअल) प्राणी है इसमें लैंगिक द्विरूपता पाई जाती हैं क्योंकि इनमें नर मादा प्राणी बाह्य आकारिकीय भिन्नताओं के आधार पर पहचानी जा सकते हैं नर व माद में पाए जाने वाले जनन क्रमशः वृषण (testes) तथा अंडाशय (Ovary) होते हैं.

नर जनन तंत्र

पुरुषों में एक जोड़ी वृषण प्राथमिक जननांग या जनदो रूप में होते हैं

मानव की नर जनन अंग-

  1. वृषण
  2. अधिवृषण
  3. शुक्रवाहिनी
  4.  शुक्राशय
  5. मूत्र मार्ग तथा
  6. ग्रंथियां

वृषण (testes)

  1. वयस्क पुरुष में एक जोड़ी गुलाबी तथा अंडाकार वृषण उदरगुहा के बाहर दोनों टांगों के मध्य थैलीनुमा वृषण कोषों में स्थित होते हैं
  2. प्रत्येक वृषण लगभग 4-5 सेमी मोटा 2.5 सेंटीमीटर लंबा तथा लगभग 10 से 15 ग्राम भार वाली संरचना है
  3. वृषण पर दो आवरण पाए जाते हैं इसमें बाहरी महीन आवरण को योनिक स्तर कहते हैं एवं यह उदरगुहा के उदारावरण से बनता है जबकि भीतरी स्तर श्वेत कंचुक कहलाता है
  4. प्रत्येक वृषण संयोजी ऊतक में दो या तीन महीन कुंडलीत शुक्रजनक नलिकाय पायी जाती है
  5. इनके अतिरिक्त संयोजी ऊतक में अंतराली कोशिकाएं या लीडिंग कोशिकाएं उपस्थित होती है जो नर हारमोंस टेस्टोस्टेरोन का स्त्रवण करती है

अधिवर्षण (Epididymis)

  1. यह एक पतली लगभग 6 मीटर लंबी अत्यधिक कुंडलित चपटी तथा कोंमा के आकार की नलिका है
  2. इसके कुंडल संयोजी ऊतक द्वारा परस्पर चिपके रहते हैं
  3. इसकी दीवार में बाहर की तरफ मोटा पेशीय स्तर तथा आंतरिक स्तर स्तारित उपकला द्वारा आस्त्तरित है
  4. इसमें शुक्राणु संचित रहते हैं
  5. अधिवर्षण शुक्राणुओं के वृषण से परिवहन के लिए एक मार्ग प्रदान करता है

शुक्रवाहिनी (vas deferns)

  1. शुक्र वाहिनी लगभग 45 सेंटीमीटर लंबी नलिका होती है
  2. पुच्चक अधिवर्षण कम कुंडलीत तथा मोटी नलिका के रूप में सीधी होकर शुक्र वाहिनी का निर्माण करता है
  3. शुक्र वाहिनी अधिवर्षण के पश्च भाग से प्रारंभ होकर ऊपर की ओर वर्षण नाल से होकर उदरगुहा में मूत्राशय के पश्चय तल पर नीचे की ओर मुड़कर चलती हुई अंत में एक फुला हुआ भाग तुम्बिका  बनती हैं
  4. यहां इसमें शुक्राशय की छोटी वाहिनी आकर खुलती है दोनों के मिलने से एक स्ख़लनीय वाहिनी का निर्माण होता है

मूत्र मार्ग (Urethra)

  1. मूत्राशय से मूत्रवाहिनी निकलकर स्ख़लनीय वाहिनी से मिलकर मूत्र जनन नलिकाएं या मूत्र मार्ग बनाते हैं
  2. यह लगभग 20 सेंटीमीटर लंबी नाल होती हैं जो सिशन के शिखर भाग पर मूत्र जनन चित्र द्वारा बाहर खोलती हैं
  3. मूत्र मार्ग मूत्र एवं विर्य दोनों के लिए एक उभयनिष्ठ मार्ग का कार्य करता है

सहायक जनन ग्रंथियां

प्रोस्टेट ग्रंथि (Prostate Gland)

  1. प्रोस्टेट ग्रंथि द्वारा हल्के सफेद क्षारीय तरल पदार्थ का स्त्रावण किया जाता है जो विजय के 25 से 30% भाग बनता है
  2. यह शुक्राणुओं को सक्रिय बनाता है एवं वीर्य के स्कंदन को रोकता है तथा अधिक आयु में प्रोस्टेट का आकार बढ़ जाता है जिससे मूत्र विसर्जन में कठिनाई होती हैं

शुक्राशय (Seminal Vesicles)

  1. यह मूत्राशय की पश्चच सतह एवं मालशय के बीच में स्थित एक जोड़ी थेलीनुमा संरचना है
  2. यह एक पीले से चिपचिपे तरल पदार्थ का स्त्रावण  करने वाली ग्रंथि है तथा इसमें फ्रुक्टोज शर्करा पोस्क्लैटाड्डिंग्स तथा प्रोटीन सेमिनोजेलीन होते हैं फ्रक्टोज शुक्राणु को एटीपी के रूप में ऊर्जा प्रदान करता है
  3. क्षारीय प्रकृति के कारण यह स्राव योनि मार्ग की अम्लीयत को समाप्त कर शुक्रानुओ की सुरक्षा करता है

काऊपर ग्रंथि या बल्बोयूरिथ्रल ग्रंथि

  1. प्रोस्टेट ग्रंथि के ठीक नीचे मूत्र मार्ग के दोनों पास शुरू में एक-एक छोटी अंडाकार ग्रंथियां स्थित होती हैं जिन्हें कउपर की ग्रंथि कहा जाता है जो मूत्र मार्ग को चिकना बनता है तथा मूत्र मार्ग की अम्लेयता को समाप्त कर उसे उदासीन या हल्का शारिय बनाता है
  2. अतः यह एक लसलसा क्षारीय तथा पारदर्शी द्रव स्रावित करती हैं जो मूत्र मार्ग का स्नेहक और क्षारीय बनाती हैं.

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मादा जनन तंत्र

स्त्रियों में एक जोड़ी अंडाशय प्राथमिक जननांगों के रूप में होते हैं इनके अतिरिक्त अन्य वाहिनी गर्भाशय योनी भाग जनन ग्रंथियां तथा स्थानीय छाती सहायक जनननागों का कार्य करते हैं

मादा के जनन अंग –

  1. अंडाशय
  2. अंडवाहिनी
  3. गर्भाशय
  4. योनी
  5. तथा भग

अंडाशय 

स्त्रियों में बादाम की आकृति के दो अंडाशय उधर गुहा में स्थित होते हैं जिन जंतुओं की सहायता से अंडाशय उधर गुहा से जुड़ते हैं उसे मिजोवेरियन जंतु रहते हैं

अंडाशय अंडे का निर्माण करते हैं तथा मादा हारमोंस ऐस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टेरोन का स्रावण करते हैं

अंडाशय में तंतुमय संयोजी ऊतक का बना गना  क्षेत्र होता है जिसे स्ट्रोम कहते हैं स्ट्रोम दो भागों में विभक्त होता है

कॉन्टैक्स (cortex)

  1.  यह बाहरी सगन भाग है जिसमें रेटिक्युलर तंतु स्पिंडल कोशिकाएं अंड पुटिकाएं तथा कुछ रक्त वाहिनीया भी पाई जाती हैं

मेंदूला (medula) 

  1. यह काम सगन केंद्रीय भाग जिसमें रेटिक्योलर और पुत्तिकाय स्पिंडल कोशिकाएं को रक्त वाहिनी पाई जाती हैं
  2. प्रत्येक अंडा एक प्राथमिकपुटिका उगोनिया के रूप में शुरुआत करता है पुटिका कोशिकाएं तब अंडे को आचंदित कर देती हैं वह एक गोहिका निर्मित होती है जिसे एंट्रम कहते हैं
  3. यह परिपक्व अंडा ग्राफियन फॉलिकल कहलाता है यह परिपक्व पुटिका होती है
  4. अंड  अंडाशय से निरुमुक्त होता है और पुटिका रिक्त हो जाती हैं और अंत: स्त्रावी ग्रंथि का निर्माण करती हैं जिसे कॉरस लुटियम कहते हैं यह प्रोगैस्टरॉन हारमोंस स्रावित करती हैं

अंड वाहिनी (Oviduct)

  1. प्रत्येक अंडाशय से लगभग 12 सेंटीमीटर लंबी कीपनुमा कुंडलित संरचना निकलती है इनका परिवर्धन भूर्ण की मूलेरियन नलिका द्वारा होता है
  2. अंड वाहिनी की संख्या दो होती हैं जो की गर्भाशय में जाकर खोलती हैं

अंड वाहिनी यह तीन भागों की बनी होती है

कीपक अंडकीप इसे इनफंडिबुलम कहते हैं यह कीप समान रचना होती हैं जिसके चारों ओर तंतुनुमा प्रबंध होते हैं और एक छिद्र होता है जिसमें अंडाणु प्रवेश करता है जिसमें ओसटीम कहते हैं

तूबीकाय एमुला यह घुमावदार भाग होता है निषेचन की क्रियाविधि अमूला में ही संपन्न होती हैं

इस्थमस यह गर्भाशय से जुड़ा सीधा नलिका द्वारा भाग होता है कुछ जंतुओं में फेलोपियन नलिका में निषेचन होने के कारण यह निषेचन नलिका भी कहलाती हैं

गर्भाशय (uterus)

  1. गर्भाशय नाशपाती की आकृति का मांसपेशियां मोटी भित्ति वाला अंग होता है इससे बच्चेदानी बुम्ब भी कहते हैं
  2. यह लगभग 7 सेंटीमीटर लंबा 5 सेंटीमीटर चौड़ा वह 2 से 5 सेंटीमीटर मोटा होता है गर्भाशय में दोनों तरफ की अंड वाहिनी आकर खुलता है गर्भाशय तीन स्तर से बना होता है
  3. गर्भाशय अतः स्तर एंडोमेट्रियम बीच का स्तर बायोमैट्रियम बाहरी स्तर पेरिमीटर कहलाता है
  4. गर्भाशय बाह्य द्वार के द्वारा योनि में खुलता है

योनी (vagina)

  1. गर्भाशय ग्रीवा उभर कर एक लचीला पेशी झील्लीमय नलीका रूपी रचना बनाती है जिसे योनी कहते हैं मूत्राशय और योनी आपस में मिलकर वेस्मातीबुल मार्ग का निर्माण करते हैं.
  2. योनि की भित्ति पेशी तथा ग्रंथि रहित होती है
  3. योनी द्वारा एक पतली म्यूकस झिल्ली द्वारा आंशिक रूप से बंद रहता है जिसे hymen कहते हैं यह प्रथम बार मेथुन होने पर कट जाती हैं
  4. यह शिशु प्रसव के समय प्रसव नाल का कार्य करती है और गर्भाशय तथा रजोधर्म विषयक स्राव के परागमन के लिए एक नलिका के रूप में कार्य करती हैं.

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