Human Body And Health मानव शरीर एवं स्वास्थ्य पहले स्वास्थ्य को शरीर के अच्छे से कार्य करने की क्षमता कहा जाता था। हालाँकि, जैसे-जैसे समय विकसित हुआ, स्वास्थ्य की परिभाषा भी विकसित हुई। इस बात पर इतना ज़ोर नहीं दिया जा सकता कि स्वास्थ्य ही प्राथमिक चीज़ है जिसके बाद बाकी सब चीज़ें आती हैं। जब आप अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखते हैं , तो बाकी सब कुछ ठीक हो जाता है।
आम कहावत स्वास्थ्य ही धन है का अर्थ बहुत ही साधारण और सरल है। इसका अर्थ है कि, हमारा अच्छा स्वास्थ्य ही हमारी वास्तविक दौलत या धन है, जो हमें अच्छा स्वास्थ और मन देता है और हमें जीवन की सभी चुनौतियों का सामना करने के लिए सक्षम बनाता है। अच्छा स्वास्थ्य अच्छे शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है। मैं इस कहावत से पूरी तरह से सहमत हूँ कि, स्वास्थ्य ही वास्तविक धन है, क्योंकि यह सभी पहलुओं पर हमारी मदद करता है।
मानव शरीर एवं स्वास्थ्य
स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है स्वास्थ्य में शारीरिक मानसिक सामाजिक रूप से रुकावट पैदा होना रोग कहलाता है विश्व स्वास्थ्य दिवस 7 अप्रैल को मनाया जाता है
रोग दो प्रकार के होते हैं
- जन्मजात रोग जो रोग जन्म के साथ ही आते हो जन्मजात रोग कहलाते हैं सभी अनुवांशिक या वंशानुगत रोग जैसे एनीमिया हीमोफीलिया वर्णानंदता
- उपार्जित अर्जित रोग जो रोग जन्म के पश्चात उत्पन्न हो उपार्जित रोग कहलाते हैं संक्रामक और संक्रामक
संक्रामक वे अर्जित रोग जो संक्रमित व्यक्ति या रोगी से स्वस्थ व्यक्ति तक स्थानांतरित होते हैं संक्रामक रोग कहलाते हैं इन रोगों के कारकों को संक्रमण रोगाणु कहते हैं असंक्रामक ग्रसित व्यक्ति तक सीमित रहने वाले रोग असंक्रामक रोग कहलाते हैं यह रोग बाह्य कारकों द्वारा होते हैं
- वायु द्वारा फैलने वाले रोग चेचक खसरा निमोनिया वर्ल्ड फ्लू दमा के डिप्थीरिया कुकर खांसी इन्फ्लूएंजा जुखाम रूबेला आदि
- जल/भोजन द्वारा फैलने वाले रोग पेचिश पोलियो हैजा टाइफाइड अंतर ज्वार पीलिया आदि
- छूने से फैलने वाले रोग चेचक कुष्ठ रोग आदि
प्रमुख रोग
जेविक कारक | अजेविक कारक |
विषाणु | हार्मोंस |
प्रटोजोवा | एंजाइम |
कृमि | खनिज तत्व |
कवक | विकिरण |
माइक्रो प्लाज्मा | भारी धात्विक तत्व |
जीवाणु | विटामिन |
मानव रोग बाह्य तथा आंतरिक पर्यावरणों के मध्य समन्वय बिगड़ते ही व्यक्ति के शरीर में विकार उत्पन्न होना प्रारंभ हो जाते हैं
रोग होने के कारण
संक्रमण – सूक्ष्म जीवों के द्वारा शरीर पर आक्रमण संक्रमण कहलाता है इसका कारण वायरस जीवाणु प्रोटोजोआ आदि सूक्ष्म जीव हैं इनके कारण पोलियो मलेरिया आदि रोग होते हैं
- पोषण विकार – उचित पोषण के अभाव से उत्पन्न विकार इस श्रेणी में आते हैं जैसे क्वाशिओरकोर मेरास्आमास आदि
- अंगों की अंतिम सक्रियता अथवा नून सक्रियता – पीयूष ग्रंथि की अति सक्रियता से व्यक्ति का दानवाकर होना तथा नून सक्रियता के फल स्वरुप बौनापन इसके उदाहरण है
- एलर्जी – कुछ व्यक्तियों का शरीर चीनी पदार्थ विशेष जैसे परागकण धूप औषधि विशेष रसायन आदि के प्रति अति संबंधी हो जाता है ऐसे पदार्थ एलर्जी तथा इसे उत्पन्न विकार जैसे छींक आना आंख नाक से पानी बहना शरीर पर चकते या दानों का उभरना आदि एलर्जी कहलाते हैं
- कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि – कोशिकाओं की सामान्य अनियंत्रित तथा अवांछित वृद्धि से शरीर के किसी भाग में उत्तकों के बने अनियमित पिंड को ट्यूमर कहते हैं
- अंगों का अपहृश्य – शरीर के किसी आवश्यक अंगों की कार्य क्षमता में हास्य होने से विकार उत्पन्न होना जैसे हृदय रोग
- जन्मजात विकार या अनुवांशिक रोग – शिशु के जन्म से ही मौजूद विकार यह अनुवांशिक कर्म अथवा भुर्निय विकास की जटिलताओं से उत्पन्न होते हैं जैसे हीमोफीलिया वर्णांधता आदि
जीवाणु जनित रोग
क्षय (तपेदिक)
क्षय रोग के कारणों की खोज 1882 में रॉबर्ट कांच ने की थी
- क्षय रोग का रोग जनक माइक्रोबैक्टेरियम ट्यूबर क्लोसिस नामक जीवाणु है
- यह जीवाणु ट्यूबरकुलीन नामक विषैला पदार्थ स्रावित करता है जो रोग उत्पन्न करने का कारण है
- यह रोग संक्रमित व्यक्ति के थूक खांसी छिक से निकली सूक्ष्म बूंद तथा वायु की सहायता से प्रसारित होता है
- प्रभावित अंग मस्तिष्क गुर्दे फेफड़े गर्भाशय अस्थि यकृत आदि
- जांच हेतु मॉन्टेक्स परीक्षण करवाया जाता है
- टी बी में व्यक्ति नपुंसक हो सकता है
- रोकथाम एवं उपचार क्षय रोग से बचाव हेतु बीसीजी का टीका शिशु के जन्म के कुछ घंटे के भीतर अवश्य लगवाना चाहिए
- स्ट्रेप्टोमाइसिन एक प्रति जैविक एंटीबायोटिक औषधि है जो टीबी रोग हेतु सर्वप्रथम विकसित की गई
- रोग के उपचार के लिए सरकार अब डॉटस पद्धति की सलाह देती हैं
- ड्रग प्रतिरोधी टीबी के इलाज हेतु नई टीबी निरोधी दवा बेडाकवीलाइन मार्च 2016 से केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम के भाग के रूप में प्रारंभ की गई है
खसरा (मीजल्स)
- यह शिशुओं का एक तीव्र संक्रामक रोग हैं
- जो परोक्ष संपर्क अथवा वायु द्वारा प्रसारित होता है
- इस रोग का रोगजनक रूबीओला वायरस है
- रोकथाम एवं उपचार इस रोग से बचाव हेतु मीजल्स का टीका लगाना चाहिए
डिप्थीरिया (गलघोंटू)
- जीवाणु कोरायनी बैक्टेरियम डिप्थीरिया गले में जुटी झिल्ली बनता है
- प्रभावित अंग श्वास नली में हवा द्वारा फैलता है
- बचाव डीपीटी का टीका
हेजा
- हेज़ा एक अति तीव्र संक्रामक रोग है जिसका रोगजनक विब्रियो कोलेरी नामक जीवाणु है जो संदूषित भोजन एवं जल द्वारा संचारित होता है
- घरेलू मक्खी इसका वहाक है
- प्रभावित अंग छोटी आंत
- लक्षण चावल के पानी जैसे दस्त
- शरीर पर चकते और निर्जलीकरण के समय सोडियम क्लोराइड की कमी हो जाती है जिसको पूरा करने के लिए ओआरएस का गोल पिलाया जाता है
- रोकथाम एवं उपचार हेजे की टीके की एक खुराक का असर 6 माह तक रहता है
- रोग होने की दशा में प्याज के रस अथवा नाइट्रो न्यूग्रटीक अम्ल की 10 12 बूंद के साथ चार पांच बुँदे अमृत धारा की जल में मिलाकर पिलाने से रोगी को लाभ होता है
टाइफाइड या मोतियाझंरा (मियादी बुखार, आंत ज्वर)
- यह भारत का एक सर्वव्यापी संक्रामक रोग है जो संदूषित जल भोजन द्वारा संचालित होता है घरेलू मक्खियों इस रोग की वाहक है
- इस रोग का रोगजनक साल्मोनेला टाइफी जीवाणु है
- रोकथाम एवं उपचार बचाव हेतु टाइफाइड टीका प्रतिरक्षण करना चाहिए वैक्सीन का असर 3 वर्षों तक रहता है
- लक्षण पेट दर्द कब्ज सर दर्द तेज ज्वर
- निदान परीक्षण वाईडल परीक्षण
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