Chittorgarh District Of Rajasthan Part 2 | राजस्थान का चित्तौड़गढ़ जिला हिंदी नोट्स पार्ट 2

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Chittorgarh District Of Rajasthan

Chittorgarh District Of Rajasthan  दोस्तों आज इस लेख के माध्यम से राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले पार्ट 2 के बारे में संपूर्ण जानकारी बताने जा रहे हैं जो विद्यार्थी कॉम्पिटेटिव एग्जाम्स की तैयारी कर रहा है उनके लिए यह जानकारी पाना बहुत आवश्यक है आज हमारे द्वारा जिले एक नजर में चित्तौड़गढ़ जिले पार्ट 2 के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें चित्तौड़गढ़ जिले का क्षेत्रफल जनसंख्या लिंगानुपात साक्षरता महत्वपूर्ण स्थल आदि के बारे में आपको पार्ट 1 में पहले ही बता चुके हैं आप हमारे साथ बने रहे .

Chittorgarh District Of Rajasthan
Chittorgarh District Of Rajasthan

अलाउद्दीन खिलजी का आक्रमण तथा पद्मिनी का जौहर

सन 1296 ई को अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली के तहत पर बैठा वहां बड़ा महत्वकांक्षी शासक था चित्तौड़ के रावल रतन सिंह की रानी पद्मिनी बड़ी रूपवती थी उसे प्राप्त करने के लिए उसने 1303 ईस्वी में चित्तौड़ पर चढ़ाई की कहा जाता है की शक्ति से पद्मिनी को प्राप्त करने में असमर्थ होने पर उसने रावल को यह संदेश भिजवाया कि यदि उसे पद्मिनी का मुख् ही दिखला दिया जाए तो वह वापस दिल्ली लौटने को तैयार है

रावल रतन सिंह ने शांति के उद्देश्य

रावल रतन सिंह ने शांति के उद्देश्य से दर्पण में पद्मिनी का मुख दिखाना स्वीकार कर लिया सुल्तान अपने कुछ सैनिकों सहित किले में आया और पद्मिनी के मुख का प्रतिबिंब देखा रानी पद्मिनी को नीचे जल महल में खड़ा किया गया तथा सुल्तान को पद्मिनी महल में पीछे मुड़कर कांच के सामने खड़ा किया गया रानी पद्मिनी को इस प्रकार जल महल की सीढ़िया पर खड़ा किया गया कि यदि सुल्तान की नियत बदल जाए और पीछे मुड़कर प्रत्येक रूप से देखना चाहिए तो भी नहीं देख पाए सुल्तान इस प्रकार पद्मिनी को कांच के प्रतिबिंब में ही देख सका

राजपूत लोग सुल्तान को पहुंचाने के लिए किले के नीचे तक गए जहां सुल्तान के संकेत पर रावल रतन सिंह को बंदी बना लिया गया और संदेश भेजा कि रावल रतन सिंह को तभी छोड़ा जाएगा जब पद्मिनी को सुल्तान के साथ भेजा जाए रावण रतन सिंह के सैनिकों ने चतुराई से कम लिया रानी की तरफ से सुल्तान को संदेश भेजो कि यदि सुल्तान रानी की दशन के लिए 1600 पालकियों का प्रबंध कर दे तो वह उसके साथ जाने को तैयार है सुल्तान सहमत हो गया

1600 सो पालकिया

1600 सो पालकिया तैयार की गई प्रत्येक पालकी में एक भी योद्धा सशस्त्र बैठाया गया तथा क्षेत्र सशस्त्र चुने हुए वीर त्योहारों के वश में एक-एक पालकी लेकर गोरा के नेतृत्व में सुल्तान के खेमे में पहुंचे गोरा ने खिलजी को संदेश भेजो कि पद्मिनी अपने पति से अंतिम मुलाकात करना चाहती है सुल्तानपुर सो गया पालकिया रतन सिंह के खेमें में पहुंची खेमे में पहुंचकर राजपूत वीरों ने रावल रतन सिंह को मुक्त कर किले की ओर रवाना किया तथा बाकी क्षत्रिय युद्ध वीर युद्ध करने लगे उसे समय युद्ध होने के पश्चात सुल्तान को निराश होकर लौटना पड़ा सुल्तान को चैन नहीं आया उसने पुनः चित्तौड़ पर हमला किया इस बार उसने चित्तौड़ पर विजय प्राप्त कर ली सभी राजपूतों के युद्ध में काम आने के बाद पद्मिनी ने अपनी सहेलियों के साथ जोहर कर लिया यह चित्तौड़ का प्रथम शाखा कहलाता है

पद्मिनी महल सूर्य कुंड के दक्षिण में तालाब के किनारे रानी पद्मिनी के महल बने हुए हैं एक छोटा सा महल तालाब के बीच में भी बना है पद्मिनी महल के कमरे में एक बड़ा कांच लगा है जिसमें पानी के बीच वाले महल में खड़े व्यक्ति का प्रतिबिंब स्पष्ट दिखाई देता है

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कीर्ति स्तंभ

सूरज पाल की ओर जाने वाली सड़क पर जैन प्रीति स्तंभ आता है 75 फीट ऊंचे सात मंजिला इस स्मारक का निर्माण 12वीं शताब्दी में दिगंबर संप्रदाय के बगैरवाल महाजन सानाय के पुत्र जीजा ने करवाया था कीर्ति स्तंभ आदिनाथ का स्मारक है इसके चारों पासर्वो पर 55 फीट ऊंची आदिनाथ की दिगंबर मूर्तियां खुदी हुई है बाकी के भागों में अनेक छोटी-छोटी जैन मूर्तियां है

नगरी

यह स्थान चित्तौड़ से 12 किलोमीटर दूर गंभीरी नदी पर स्थित है इसका प्राचीन नाम माध्यमिक था इसी क्षेत्र में हाथियों का भाड़ा नामक एक विस्तृत स्थान है इससे थोड़ी दूर एक दिवड बनी है इसके संबंध में कहा जाता है कि अकबर की सेवा द्वारा चित्तौड़ आक्रमण के समय यहां मसाले जलाकर दूर-दूर तक प्रकाश किया जाता था

मेनाल

यह स्थान चित्तौड़ बूंदी सड़क मार्ग पर चित्तौड़गढ़ से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यहां से प्राप्त अवशेषों से ज्ञात होता है कि प्राचीन काल में यह बहुत समृद्ध रहा होगा मीनल प्राचीन शिव मंदिर नीलकंठ महादेव के लिए प्रसिद्ध है यह शिवालय महानाल देव के नाम से भी निर्मित है इसलिए इस स्थान का नाम भी मेंनल हो गया

बाडोली

यह स्थान चित्तौड़गढ़ कोटा सड़क मार्ग पर चित्तौड़गढ़ से 120 किलोमीटर दूर स्थित है यहां के प्राचीन भव्य मंदिर दर्शनीय है ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण हूणों द्वारा करवाया गया था यह मंदिर लगभग 250 मी वर्गाकार का अहाते मैं निर्मित है इसमें मुख्य घटेश्वर का शिवालय है घटेश्वर की अतिरिक्त यहां गणेश नारद त्रिमूर्ति एवं शेषसैया इत्यादि के मंदिर में है

श्री सांवलिया जी का मंदिर

श्री सांवलिया जी का मंदिर चित्तौड़गढ़ से 40 किलोमीटर दूर मंडपिया गांव में स्थित है श्री कृष्ण के इस मंदिर के प्रति लोगों की असीम श्रद्धा है प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु यहां आते हैं तथा श्री सांवलिया के दर्शन का लाभ लेते हैं

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