Bhilwara district of Rajasthan दोस्तों आज इस लेख के माध्यम से राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के बारे में संपूर्ण जानकारी बताने जा रहे हैं जो विद्यार्थी कॉम्पिटेटिव एग्जाम्स की तैयारी कर रहा है उनके लिए यह जानकारी पाना बहुत आवश्यक है आज हमारे द्वारा जिले एक नजर में भीलवाड़ा जिले के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें भीलवाड़ा जिले का क्षेत्रफल जनसंख्या लिंगानुपात साक्षरता महत्वपूर्ण स्थल आदि के बारे में जानकारी प्रदान करवा रहे हैं आप हमारे साथ बने रहे.
Bhilwara district of Rajasthan
राजस्थान की वस्त्र नगरी के नाम से विख्यात भीलवाड़ा तालाबों एवं बांधों के लिए प्रसिद्ध है
राजस्थान में तालाबो द्वारा सर्वाधिक सिंचाई भीलवाड़ा में होती हैं
राजस्थान में अभ्रक उत्पादक की दृष्टि से भी भीलवाड़ा का प्रथम स्थान है
1988 ई में भीलवाड़ा में माणिक्य लाल वर्मा टैक्सटाइल इंस्टीट्यूट की स्थापना की गई यह स्वायत शासन विश्वविद्यालय जयपुर से संबंध था
प्राचीन अभिलेख तथा अवशेषों से भीलवाड़ा जिले के इतिहास की गाथा का पता चलता है पाषाण युगीन सभ्यता के अवशेष पुरानी नदियों के किनारे बिखरे हुए हैं इनमें आगूचा वह जियान एवं हुरड मुख्य है जिले के बागोर गांव में हुई खुदाई में पाषाण युगीन सभ्यता का पता चलता है बागोर भारत का सबसे संपन्न पाशनीय सभ्यता स्थल है वैदिक काल में संपन्न किए जाने वाले धार्मिक कार्यों की जानकारी नान्दसा में पाए जाने वाले युप स्तंभ से होती हैं नवी से 12वीं शताब्दी के पुरातात्विक मंदिरों से यह जिला परिपूर्ण हैबिजोलिया तिलस्वा और मांडलगढ़ मध्यकालीन मंदिर कला एवं स्थापत्य के अनुच्छेद नमूने हैं मंदाकिनी मंदिर एवं वाहन के शिलालेख भी पुरातत्व की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है
यह क्षेत्र गुहिल एवं चौहान राजपूत के राज्य का एक अंश रहा है भीलवाड़ा जिले के कई क्षेत्र मुगल काल में मेवाड़ राज्य तथा शाहपुरा ठिकाने के भाग रहे हैं मेवाड़ राज्य एवं शाहपुरा ठिकाने के संयुक्त राजस्थान में विलय के बाद सन 1949 ईस्वी में जिले के रूप में अलग-अलग अस्तित्व में आया सन 1951 ईस्वी में से 1961 ई के मध्य दो ग्राम चित्तौड़गढ़ जिले से इस जिले में सम्मिलित किए गए तथा इसके साथ ही कर तहसील बदनोर करेड़ा फुलिया वह अरवड समाप्त कर दी गई जिले के मांडलगढ़मंडल व अन्य क्षेत्रों का मुगलकालीन आक्रमण के दौरान रक्षा चौकिया के रूप में इस्तेमाल एक ऐतिहासिक तथ्य है
यहां का क्षेत्रफल 10455 वर्ग किलोमीटर है
यहां की कुल जनसंख्या 24.008 लाख है
यहां का लिंगानुपात 973 है
यहां की साक्षरता दर 61.37 प्रतिशत है
भौगोलिक स्थिति
उपग्रह सर्व 1982 से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार इस जिले को भौगोलिक भूगर्भ जल निकास ढलान तथा उच्चावच गुना के आधार पर 13 भू प्राकृतिक क्षेत्र में वर्गीकृत किया गया है पश्चिमी भाग को छोड़कर सामान्यतः जिला आयताकार है पूर्वी भाग की तुलना में पश्चिमी भाग अधिक चौड़ा है
जिले में बहने वाली प्रमुख नदियां बनास एवं उसकी सहायक बेडच कोठारी व खारी है अन्य छोटी नदियां मानसी मयनल चंद्रभागा एवं नगदी है बनास नदी अरावली पर्वत श्रेणी से उदयपुर जिले के उत्तरी भाग सेनिकालकर भीलवाड़ा जिले में दूडीया गांव के पास प्रविष्टि होती हैं यह नदी उत्तर एवं तट पश्चात उत्तर पूर्व में बहती हुई जहाजपुर तहसील में पश्चिमी क्षेत्र में टोंक जिले में प्रवेश कर जाती हैं जिले में कोई प्राकृतिक झील नहीं है
प्रमुख स्थल
मंडल
भीलवाड़ा से 14 किलोमीटर दूर स्थित मंडल कस्बे में प्राचीन स्तंभ मिन्दारा पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है हाल ही में इसके जीर्णोद्धार से इसके आकर्षण में बढ़ोतरी हुई है यहां से कुछ ही दूर मेजा मार्ग पर स्थित प्रसिद्ध जगन्नाथ कछुआ है कि 32 खभों की विशाल छतरी ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व का स्थल है 6 किलोमीटर दूर भीलवाड़ा का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल मेजा बांध है यहां हरे-भरे पार्क भी है यहां बने मेजर पार्क को ग्रीन माउंट कहा जाता है मंडल में होली के 13 दिन पश्चात रंग तेरस पर आयोजित नाहर नृत्य अपने आप में विशेष स्थान रखता है इस नृत्य को देखने के लिए हजारों नर नारी उपस्थित होते हैं कहा जाता है कि शाहजहां के शासनकाल से ही यहां यह नृत्य होता चला आ रहा है
मांडलगढ़
भीलवाड़ा से 51 किलोमीटर दूर है यहां मांडलगढ़ नामक अति प्राचीन विशाल दुर्गा है त्रिभुजाकार पत्थर पर स्थित यह दुर्ग राजस्थान के प्राचीनतम दुर्गों में सेएक है यह दुर्गा बारी-बारी से मुगलों का राजपूतों के अधीन में रहा यह दुर्ग अनेक प्रसिद्ध युद्ध का प्रत्यक्ष दृष्ट रहा
सिंग वाले शेर
मांडल में एक प्रकार का स्वांग होता है जिसे सिंह वाले शेर कासांग कहते हैं यहां अमर के जगन्नाथ कछुआ है की समाधि पर बनी 32 खाबो वाली विशाल छतरी मिश्रित स्थापत्य कला का अनूठा नमूना है मांडलगढ़ तहसील मुख्यालय से दक्षिण पूर्व दिशा में 7 किलोमीटर दूर बाण माता का मंदिर है यहां गोवटा बांध है
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मेनाल
मांडलगढ़ से 20 किलोमीटर दूर चित्तौड़गढ़ की सीमा पर स्थित पुरातात्विक एवं प्राकृतिक सौंदर्य स्थल मीनल में 12वीं शताब्दी के चौहान कल के लाल पत्रों में निर्मित महानलेश्वर मंदिर रूठी रानी का मंदिर हजारेश्वर मंदिर है यहां के मंदिरों पर उत्क्न विभिन्न प्रतिमाएं अजंता एलोरा की प्रतिमाओं की याद ताजा कर देती है हरी भरी वीडियो के बीच सैकड़ो फीट ऊंचाई से गिरता मयनल नदी का जलप्रपात भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख स्थल है
तिलस्वा
मांडलगढ़ से 40 किलोमीटर दूर है प्रसिद्ध धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल तिलस्वा महादेव यहां प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि पर विशाल मेला लगता है यहां वर्ष भर देश के कोने-कोने से कुष्ठ और चर्म रोग से ग्रस्त पीड़ित रोगी स्वास्थ्य लाभ हेतु आते हैं
बिजोलिया
मांडलगढ़ से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित बिजोलिया में प्रसिद्ध मंदाकिनी मंदिर एवं बावड़िया है यह मंदिर भी 12वीं शताब्दी के बने हुए हैं लाल पत्थरों से बने मंदिर पुरातात्विक ऐतिहासिक महत्व के स्थल है यहां नगर पर कोर्ट बना हुआ है इतिहास प्रसिद्ध किसान आंदोलन के लिए भी बिजोलिया प्रसिद्ध रहा है यहां के मंदिर और चट्टानों पर बने शिलालेख भी गौरवशाली इतिहास के साक्षी है
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शाहपुरा
भीलवाड़ा से 50 किलोमीटर दूर स्थित प्राचीन नगर शाहपुर अंतर्राष्ट्रीय रामस्नेही समुदाय के लोगों के तीर्थ स्थल है यहां रामसनेही संतों के कलात्मक छतरियां से बना राम द्वारा दर्शनीय है यहां प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी केसरी सिंह बारेट और प्रताप सिंह बारेट की प्रसिद्ध हवेली स्मारक के रूप में विद्यमान है शाहपुरा के लगभग 250 वर्ष पुराने कलात्मक राजमहल भी यहां के ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल यहां पर होली के दूसरे दिन प्रसिद्ध मेला फुलडोल लगता है उम्मेद सागर यहां का प्राकृतिक पर्यटन स्थल है तथा नगर के बीच बना कमल सागर भी अपने सौंदर्य से पर्यटकों को आकर्षित करता है
वस्त्र उत्पादन में अग्रणी
राज्य सरकार के औद्योगिक नीति के अनुरूप भीलवाड़ा में औद्योगिक विकास हेतु अनुकूल वातावरण बना है तथागुरुत्व गति से हो रहे परिवर्तन के साथ जिले में औद्योगिक क्रांति का सूत्रपात हुआ है
शाहपुरा फड़ चित्र शैली के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाना जाता है सिंथेटिक वस्त्र निर्माण में भीलवाड़ा राजस्थान के महत्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्र में श्रेष्ठ होने के साथ-साथ देश के सिंथेटिक वस्त्र उद्योग मानचित्र में भी मुंबई बडौदा सूरत अहमदाबाद जैसे बड़े-बड़े नगरों के साथ उजागर हो रहा है यहां निर्मित कपड़े की निर्यात बाजार में अच्छी मांगे भीलवाड़ा जिले में स्थापित लगभग 5 इकाइयों में प्रति वर्ष 6000 करोड़ पर 600 करोड़ मीटर कपड़ा उत्पादित हो रहा है जिसका विक्रय मूल्य 1100 करोड रुपए हैं भीलवाड़ा में निर्मित ग्रे कपड़े को प्रोसेस करने के लिए वर्तमान में 14 प्रोसेस हाउस स्थापित किय गये है वस्त्र निर्माण इकाइयों में लगभग 13000 से अधिक व्यक्ति कोरोजगार उपलब्ध है
कला एवं संस्कृति
भीलवाड़ा जिला पड एवं लघु चित्र शैली के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध पड चित्र शैली के क्षेत्र जहां शाहपुर निवासी दुर्गेश जोशी एवं शांतिलाल जोशी तथा भीलवाड़ा निवासी श्री लाल जोशी को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया जा चुका है वहीं लघु चित्र शैली में भीलवाड़ा के वयु वृद्धि चित्रकार बद्री लाल सोनी भी राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं
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